तुमसे मिलके मान लिया क्या खूब क़िस्मत मेरी थी,
मेरे देखे हर ख़्वाब में झलक तेरी थी ।
तुमने तो पर ठान लिया था कि हर चीज़ में ग़ल्ती मेरी थी
जबकि गलती सिर्फ़ एक थी, मान लिया था जो तू मेरी थी ।।
हमारी सैंकड़ों लड़ायिओं के बाद ये जो चल दी हो तुम अपने रास्ते पर अपनी अहं की पोटली थामें,
सब कुछ देखा उसने, जो दिलों की एक कचहरी थी ।
झूठे बयान और ज़ख़्मों को तुम पेश करती गई,
जीत तो किसी की नहीं हुई इसमें पर हार तेरी थी ।।
अब जो हुआ है मेरे ख़्वाबों का एक नया सवेरा,
याद तू रखना इसमें नहीं है एक भी हिस्सा तेरा ।।
ज़्यादा बदला नहीं हूँ मैं,
ग़लतियाँ करता हूँ अभी भी,
पर सुधारने की कोशिश भी करता रहता हूँ,
बस अब किसी नये को अपना ख़्वाब बनाने में डरता रहता हूँ ।।
अकेला लगा हूँ अपनी मंज़िलों को मुकम्मल करने,
बस तेरे जाने को हौंसला बना लेता हूँ ।।
एक दिन आएगा, ऊँचे मक़ाम पर खड़े होके देखूँगा अपने सारे टूटे हुए सपने,
अकेला खड़ा होऊँगा जो मैं वहाँ, काश ध्यान से चुने होते लोग अपने ।।